कुंडली में विराजमान ग्रह आपको किस तरह करते हैं प्रभावित
आकाशगंगा में स्थित ग्रह और पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों के बीच में कनेक्शन होने के कारण जैसे-जैसे आकाश गंगा में ग्रह अपने मित्र शत्रु अथवा शत्रु ग्रहों की राशि में होते हैं, उसी प्रकार के समीकरण नीचे पृथ्वी पर उस ग्रह से संबंधित मनुष्य के जीवन को बनाने एवं बिगाड़ने लगते हैं! इस रहस्य के बारे में समझाने का प्रयास करते हैं
यदि आप ज्योतिष शास्त्र में नए हैं,और आपको सरल पूर्वक ज्योतिष को समझना है, तो यह समझ लीजिए कि जिस प्रकार आपके आसपास आपके शत्रु,मित्र संबंधी इत्यादि रहते हैं! उसी प्रकार से प्रत्येक ग्रह का कोई ना कोई ग्रह शत्रु ग्रह होता है !अथवा मित्र ग्रह होता है! या फिर वह एक दूसरे के ग्रहों के बीच में सम संबंध देखे जाते हैं!
मान लीजिए आप एक क्रोधी और ताकतवर मनुष्य हैं, इसका यह मतलब तो नहीं हुआ कि आपके सामने जो भी मनुष्य आ जाएगा आप उसे पर क्रोधी करेंगे!आप किसी व्यक्ति पर क्रोध करने से पहले यह देखेंगे कि मनुष्य वह मनुष्य आपका मित्र है या फिर आपका शत्रु!
आप यह भी देखेंगे कि वह व्यक्ति आपका सगा संबंधी अथवा परिवार का सदस्य तो नहीं है! या बाहर का कोई व्यक्ति इस प्रकार कई समीकरणों पर विचार करने के बाद भी आप या तो क्रोध करेंगे,अथवा अपने क्रोध को अपने अंदर की दबा देंगे! इसी प्रकार जन्म कुण्डली देखते समय एक कुशल ज्योतिषी ग्रहों के बहुत सारे समीकरणों को सिद्धांत के रूप में जांचता है! ज्योतिष शास्त्र में ग्रह अपनी स्वरासी उच्च राशि नीच राशि अवश्य सुनी होगी!
सिंह राशि सूर्य की स्वरासी है, कर्क राशि चंद्रमा की स्वराशि है!
मेष और वृश्चिक इन दोनों राशियों का स्वामी मंगल है! यानी कि अगर मंगल किसी के जन्मपत्री में मेष या वृश्चिक राशि में बैठा है तो मंगल को ज्योतिषी शब्दावली में स्वरासी कहा जाएगा!इसी प्रकार से प्रत्येक ग्रह के लिए समझना चाहिए !
सभी ग्रह अपनी स्वयं की राशि यानी स्वरासी में स्थित होकर बैठकर उस घर पर या उस भाव को शुभ फलों से भर देते हैं! अगर कोई ग्रह अपने स्वयं की राशि को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है!तो भी उस भाव के लिए बेहद ही अच्छा माना जाता है!
जैसे कि आप किसी दूसरी जगह बैठकर अपने घर अथवा दुकान पर पूर्ण रूप से नजर रखते हैं! इसी तरह से ग्रहों की पूर्ण दृष्टियों को भी ध्यान में रखना चाहिए!
प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से सप्तम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं!तीन ग्रहों के पास सप्तम पूर्ण दृष्टि के साथ-साथ दो अतिरिक्त दृष्टियां भी है !उनकी गणना पूर्ण दृष्टि में की जाती है!मंगल अपने स्थान से चतुर्थ भाव सप्तम भाव एवं अष्टम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं!
शनि देव जहां बैठे होते हैं वहां से तीसरा भाव सप्तम भाव दशम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं!तथा गुरु भी जिस घर में बैठते हैं उसे घर से पंचम घर सप्तम घर एवं नवम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं! इसी प्रकार की भाषा एवं संकेत समझ में आने पर व्यक्ति को फलादेश में महीरता प्राप्त हो जाती है!